चराग़-ए-सुब्ह से शाम-ए-वतन की बात करो
जो राह में है अभी उस करन की बात करो
दर-ए-क़फ़स पे जो आए सबा तो फिर पहरों
बिठा के सामने गुल-पैरहन की बात करो
जहाँ से टूट गया सिलसिला ख़यालों का
वहाँ से ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन की बात करो
Jaun Eliya
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'मीर'-जी से अगर इरादत है
रात क्या सोच रहा था मैं भी
ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए
इस से पहले नज़र नहीं आया
अब जो देखा तो दास्तान से दूर
उस से कहना कि कभी आ के मिले
इश्क़ में भी सियासतें निकलीं
ज़िंदगी के सराब भी देखूँ
निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से
हुईं आँखें अजब बेहाल अब के
मोहब्बत ख़ब्त है या वसवसा है