सदा Poetry (page 16)

हर मरहला-ए-शौक़ से लहरा के गुज़र जा

साग़र सिद्दीक़ी

है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं

साग़र सिद्दीक़ी

चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो

साग़र सिद्दीक़ी

भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए

साग़र सिद्दीक़ी

सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया

साग़र निज़ामी

न कश्ती है न फ़िक्र-ए-ना-ख़ुदा है

साग़र निज़ामी

कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ

साग़र मेहदी

रस्तों पे न बैठो कि हवा तंग करेगी

सफ़दर सलीम सियाल

साँस की धार ज़रा घुसती ज़रा काटती है

सईद शरीक़

नहीं है ये तिरा कूचा नहीं है

सईद राही

इब्तिदा मुझ में इंतिहा मुझ में

सईद नक़वी

निस्फ़ हिज्र के दयार से

सईद अहमद

बद-गुमान

सईद अहमद

पत्थर को पूजते थे कि पत्थर पिघल पड़ा

सईद अहमद

यूँ तो हर एक शख़्स ही तालिब समर का है

सादिक़ नसीम

रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ

सादिक़ नसीम

जो लब पे न लाऊँ वही शे'रों में कहूँ मैं

सादिक़ नसीम

'बेदिल' का तख़य्युल हूँ न ग़ालिब की नवा हूँ

सादिक़ नसीम

और कुछ चारा नहीं

सादिक़

मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ

सादिक़

कैसे सच से रहे बे-ख़बर आइना

सचिन शालिनी

ऐ काश ख़ुद सुकूत भी मुझ से हो हम-कलाम

साबिर ज़फ़र

नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम

साबिर ज़फ़र

मैं जिस के साथ 'ज़फ़र' उम्र भर उठा बैठा

साबिर ज़फ़र

जीने का दरस सब से जुदा चाहिए मुझे

साबिर ज़फ़र

दरीचा बे-सदा कोई नहीं है

साबिर ज़फ़र

ये महर ओ मह बे-चराग़ ऐसे कि राख बन कर बिखर रहे हैं

साबिर वसीम

जो ख़्वाब मेरे नहीं थे मैं उन को देखता था

साबिर वसीम

आज की रात

साबिर दत्त

फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है

साबिर दत्त

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