सदा Poetry (page 18)

दिल की हालत बिगड़ रही है क्यूँ

रज़िया हलीम जंग

वो शाख़-ए-गुल कि जो आवाज़-ए-अंदलीब भी थी

राज़ी अख्तर शौक़

ख़्वाबों की इक भीड़ लगी है जिस्म बेचारा नींद में है

राज़ी अख्तर शौक़

जाने क्या है जिसे देखो वही दिल-गीर लगे

राज़ी अख्तर शौक़

अब सफ़र हो तो कोई ख़्वाब-नुमा ले जाए

राज़ी अख्तर शौक़

क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला

रज़ा जौनपुरी

जिंस-ए-गिराँ का मैं हूँ ख़रीदार दोस्तो

रज़ा जौनपुरी

सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ

रज़ा हमदानी

मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है

रज़ा हमदानी

जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी

रज़ा हमदानी

हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे

रज़ा हमदानी

हर अक्स ख़ुद एक आइना है

रज़ा हमदानी

ज़िंदगी की शराब पानी है

रौशन लाल रौशन

नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है

रौनक़ टोंकवी

वो ये कहते हैं सदा हो तो तुम्हारे जैसी

रउफ़ रज़ा

क़रीब भी तो नहीं हो कि आ के सो जाओ

रउफ़ रज़ा

जितना पाता हूँ गँवा देता हूँ

रउफ़ रज़ा

इसी बिखरे हुए लहजे पे गुज़ारे जाओ

रउफ़ रज़ा

जुदा वो होते तो हम उन की जुस्तुजू करते

रतन पंडोरवी

मिली है कैसे गुनाहों की ये सज़ा मुझ को

राशिद तराज़

जिसे उड़ान के बदले थकान देता है

राशिद राही

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

राशिद फ़ज़ली

दस्त-ए-इम्काँ में कोई फूल खिलाया जाए

राशिद अनवर राशिद

सफ़र

राशिद आज़र

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

टूट जाए तो कहीं उस को भी चैन आता है

रशीदा सलीम सीमीं

लाख चाहा मैं ने पर्दा सामने आया नहीं

रशीद उस्मानी

यूँ भी इक बज़्म-ए-सदा हम ने सजाई पहरों

रशीद क़ैसरानी

पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा

रशीद क़ैसरानी

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