गिराया Poetry (page 6)

जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर

फ़ानी बदायुनी

वो आश्ना-ए-मंज़िल-ए-इरफ़ाँ हुआ नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है

फ़ना बुलंदशहरी

हर घड़ी पेश-ए-नज़र इश्क़ में क्या क्या न रहा

फ़ना बुलंदशहरी

बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

आँखों में नमी आई चेहरे पे मलाल आया

फ़ना बुलंदशहरी

एक रह-गुज़र पर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किसी के दर पे सज्दा करते करते

फ़हीम जोगापुरी

कार-ए-ख़ैर इतना तो ऐ लग़्ज़िश-ए-पा हो जाता

एजाज़ वारसी

चुप खड़े हैं दरमियान-ए-का'बा-ओ-बुत-ख़ाना हम

एजाज़ वारसी

ख़याल के फूल खिल रहे हैं बहार के गीत गा रहा हूँ

एहसान दरबंगावी

बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे

एहसान दानिश

है निगाहों में कोह-ए-तूर मियाँ

डॉक्टर आज़म

हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने

दिवाकर राही

तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है

दर्शन सिंह

जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है

दर्शन सिंह

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का

दाग़ देहलवी

मोहब्बत किस क़दर यास-आफ़रीं मालूम होती है

चराग़ हसन हसरत

दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

दश्त में उड़ते बगूलों की ये मस्ती एक दिन

भारत भूषण पन्त

शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था

बेख़ुद देहलवी

चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है

बहज़ाद लखनवी

न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है

बेदम शाह वारसी

दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा

बेदम शाह वारसी

बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना

बेदम शाह वारसी

अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए

बेदम शाह वारसी

यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें

बशीर बद्र

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