गिराया Poetry (page 2)

मंज़िलों को नज़र में रक्खा है

ताबिश देहलवी

वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

क्लर्क

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

तमाशा-गाह-ए-आलम पर्दा-दार रू-ए-ज़ेबा है

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

दिल दुखा था मिरा ऐसा कि दिखाया न गया

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

आबरू की किसे ज़रूरत है

सुनील कुमार जश्न

और कर लेंगे वो क्या अब हमें रुस्वा कर के

सुलैमान अहमद मानी

ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा

सूफ़ी तबस्सुम

मोहब्बत किस क़दर सेहर-आफ़रीं मालूम होती है

सूफ़ी तबस्सुम

चराग़ सज्दा जला के देखो है बुत-कदा दफ़्न ज़ेर-ए-काबा

सिराज लखनवी

क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी

सिराज लखनवी

अच्छा क़िसास लेना फिर आह-ए-आतिशीं से

सिराज लखनवी

कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है

सिरज़ अालम ज़ख़मी

फिर सूरज ने शहर पे अपने क़हर का यूँ आग़ाज़ किया

सिराज अजमली

तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है

सिकंदर अली वज्द

ना-ख़लफ़ मिज़ाज की मुसद्दक़ा तस्लीमात

सिदरा सहर इमरान

ग़र्क़-ए-ग़म हूँ तिरी ख़ुशी के लिए

शिव दयाल सहाब

जब सोज़ दुआ में ढलता है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

गया शैतान मारा एक सज्दा के न करने में

ज़ौक़

किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा

ज़ौक़

चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए

ज़ौक़

औरत

शौकत परदेसी

इबादत के वक़्त में हिस्सा

शारिक़ कैफ़ी

ये तमाम ग़ुंचा-ओ-गुल मैं हँसूँ तो मुस्कुराएँ

शकील बदायुनी

जुनूँ से गुज़रने को जी चाहता है

शकील बदायुनी

अज़ल से दिल है सज्दा में तिरे अबरू के मस्जिद में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

पहले इश्क़ की मौत पर

शहराम सर्मदी

पाप

शहनाज़ नबी

जिधर भी देखिए इक रास्ता बना हुआ है

शाहिद ज़की

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