गिराया Poetry (page 7)

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है

बशीर बद्र

रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने

बाक़ी सिद्दीक़ी

क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ

ज़फ़र

करो तलाश हद-ए-आसमाँ मिलने न मिले

अज़ीज़ तमन्नाई

परिंदे झील पर इक रब्त-ए-रूहानी में आए हैं

अज़ीज़ नबील

परतव-ए-हुस्न कहीं अंजुमन-अफ़रोज़ तो हो

अज़ीज़ लखनवी

गिर्या-ए-शब की शहादत के लिए जागते हैं

अज़हर नक़वी

हम तसव्वुर में उन के उभरने लगे

अय्यूब जौहर

गह मश्क़-ए-सितम गाह-ए-करम याद करेंगे

औलाद अली रिज़वी

इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम

असरार-उल-हक़ मजाज़

ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है

आसिफ़ रज़ा

अज़ल के दिन जिन्हें देखा था बज़्म-ए-हुस्न-ए-पिन्हाँ में

आरज़ू सहारनपुरी

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का अल्लाह रे ज़माना

अर्शी भोपाली

वो ले के हौसला-ए-अज़्म-ए-बे-पनाह चले

अर्श मलसियानी

वो क्या मस्लहत थी

आरिफ़ा शहज़ाद

उस गली से मिरे गुज़रने तक

आरिफ़ इमाम

सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैं

आरिफ़ इमाम

सब लहू जम गया उबाल के बीच

आरिफ़ इमाम

नफ़स की आमद-ओ-शुद को वबाल कर के भी

आरिफ़ इमाम

यहाँ काँप जाते हैं फ़लसफ़े ये बड़ा अजीब मक़ाम है

अनवर मिर्ज़ापुरी

नाम तेरा भी रहेगा न सितमगर बाक़ी

अनीस अंसारी

फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा

अमीर मीनाई

यूँ दिल है सर-ब-सज्दा किसी के हुज़ूर में

अमीन हज़ीं

यूँ दिल है सर-ब-सज्दा किसी के हुज़ूर में

अमीन हज़ीं

मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा

अल्लामा इक़बाल

मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा

अल्लामा इक़बाल

ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब

अल्लामा इक़बाल

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

अल्लामा इक़बाल

अपने से बे-समझ को हक़ की कहाँ पछानत

अलीमुल्लाह

दयार-ए-सज्दा में तक़लीद का रिवाज भी है

अली जव्वाद ज़ैदी

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