बजा
नमाज़-ए-जनाज़ा हम ने अदा तो की थी
प तुझ को सज्दा नहीं किया था
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Rahat Indori
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Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
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फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया
शिकस्त
ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा
ब-राह-ए-रास्त नहीं फिर भी राब्ता सा है
मुझे तस्लीम बे-चून-ओ-चुरा तू हक़-ब-जानिब था
फ़ज़ा होती ग़ुबार-आलूदा सूरज डूबता होता
हुक्मराँ जब से हुईं बस्ती पे अफ़्वाहें वहाँ
बदल जाएगा सब कुछ ये तमाशा भी नहीं होगा
लौह-ए-अय्याम
हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं
मिरे सुख़न पे इक एहसान अब के साल तो कर
सुन रखा था तजरबा लेकिन ये पहला था मिरा