सागर Poetry (page 37)

ख़ौफ़-ए-जाँ आस-पास रहता है

अहसन इमाम अहसन

इक मैं हूँ कि लहरों की तरह चैन नहीं है

अहमद ज़िया

वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है

अहमद ज़िया

एहसास की मंज़िल से गुज़र जाएगा आख़िर

अहमद ज़िया

ज़हर को मय न कहूँ मय को गवारा न कहूँ

अहमद ज़फ़र

यूँ ज़माने में मिरा जिस्म बिखर जाएगा

अहमद ज़फ़र

फ़लक पे चाँद नहीं कोई अब्र-पारा नहीं

अहमद ज़फ़र

और क्या मेरे लिए अरसा-ए-महशर होगा

अहमद ज़फ़र

ख़ुद को छूने से डरा करते हैं

अहमद वसी

ग़र्क़ करता है न देता है किनारा ही मुझे

अहमद शनास

बस इक जहान-ए-तहय्युर से आने वाला है

अहमद शनास

जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शाइरी है

अहमद सलमान

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा

अहमद नदीम क़ासमी

इक सफ़ीना है तिरी याद अगर

अहमद नदीम क़ासमी

क़यामत

अहमद नदीम क़ासमी

ढलान

अहमद नदीम क़ासमी

बीसवीं सदी का इंसान

अहमद नदीम क़ासमी

उम्र भर उस ने इसी तरह लुभाया है मुझे

अहमद नदीम क़ासमी

सूरज को निकलना है सो निकलेगा दोबारा

अहमद नदीम क़ासमी

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा

अहमद नदीम क़ासमी

जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया

अहमद नदीम क़ासमी

यूँ ही कब तक ऊपर ऊपर देखा जाए

अहमद महफ़ूज़

कोई तो दश्त समुंदर में ढल गया आख़िर

अहमद ख़याल

फ़ना के दश्त में कब का उतर गया था मैं

अहमद ख़याल

बस्ती से चंद रोज़ किनारा करूँगा मैं

अहमद ख़याल

तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं

अहमद कमाल परवाज़ी

अन-पढ़ गूँगे का रजज़

अहमद जावेद

परछाईं का सफ़र

अहमद हमेश

अश्लोक

अहमद हमेश

चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया

अहमद हमदानी

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