ग़र्क़ करता है न देता है किनारा ही मुझे
उस ने मेरी ज़ात में कैसा समुंदर रख दिया
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मैं बात करने लगा था कि लफ़्ज़ गूँगे हुए
जिस्म के बयाबाँ में दर्द की दुआ माँगें
दश्त-ए-उम्मीद में ख़्वाबों का सफ़र करना था
एक बच्चा ज़ेहन से पैसा कमाने की मशीन
वो मेरे अलावा मुझे चाहता है
लफ़्ज़ों की दस्तरस में मुकम्मल नहीं हूँ मैं
ख़ुद को पाया था न खोया मैं ने
इमरोज़ की कश्ती को डुबोने के लिए हूँ
फिर इस के ब'अद पत्थर हो गया आँखों का पानी
अल्लाह वाला एक क़बीला मेरी निस्बत
यहाँ हर लफ़्ज़ मअनी से जुदा है
शब-ओ-रोज़ नख़्ल-ए-वजूद को नया एक बर्ग-ए-अना दिया