सामने Poetry (page 17)

अब तो ख़ुद से भी कुछ ऐसा है बशर का रिश्ता

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह

ग़ालिब

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं

ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ग़ालिब

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो

फ़ितरत अंसारी

हो गए यार पराए अपने

फ़ीरोज़ा ख़ुसरो

मैं एक संग हूँ मुझ में हैं सूरतें पिन्हाँ

फ़िरदौस गयावी

उमीद की कोई चादर तो सामने आए

फ़िरदौस गयावी

अब क्या बताऊँ शहर ये कैसा लगा मुझे

फ़िरदौस गयावी

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया

फ़िराक़ गोरखपुरी

तिरे ग़म के सामने कुछ ग़म-ए-दो-जहाँ नहीं है

फ़िगार उन्नावी

तिरी जुस्तुजू में देखा मैं कहाँ कहाँ से गुज़रा

फ़िगार मुरादाबादी

ये दौर कैसा है या-इलाही कि दोस्त दुश्मन से कम नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

बिसात-ए-दानिश-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर कहाँ खोलें

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

घर की मुश्किल कोई हल चाहती है

फ़े सीन एजाज़

आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे

फ़े सीन एजाज़

हवा ने छीन लिया आ के मेरे होंटों से

फ़व्वाद अहमद

ख़ुशबू है और धीमा सा दुख फैला है

फ़ातिमा हसन

मुज़्तरिब दिल की कहानी और है

फ़सीह अकमल

किसी के सामने इस तरह सुर्ख़-रू होगी

फ़सीह अकमल

देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप

फ़सीह अकमल

सोचते रहने से क्या क़िस्मत का लिक्खा जाएगा

फ़र्रुख़ जाफ़री

सिलसिले ख़्वाब के अश्कों से सँवरते कब हैं

फ़ारूक़ शमीम

पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या

फ़ारूक़ नाज़की

मिरे नाख़ुदा न घबरा ये नज़र है अपनी अपनी

फ़ारूक़ बाँसपारी

तुम्हारे क़स्र-आज़ादी के मेमारों ने क्या पाया

फ़ारूक़ बाँसपारी

कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा

फ़ारूक़ बाँसपारी

सब्ज़ मौसम की रिफ़ाक़त उस का कारोबार है

फ़ारूक़ अंजुम

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