सामने Poetry (page 19)

शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बैठा है मेरे सामने वो

फ़हमीदा रियाज़

इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

एज़ाज़ अहमद आज़र

महमिल है मतलूब न लैला माँगता है

एजाज़ गुल

इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या

एजाज़ गुल

रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया

एजाज़ अासिफ़

हूँ मैं भी शो'बदा कोई दुनिया के सामने

एजाज़ अासिफ़

हर एक शय की हक़ीक़त से बा-ख़बर देखूँ

एजाज़ अासिफ़

बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई

एहतराम इस्लाम

तौबा की नाज़िशों पे सितम ढा के पी गया

एहसान दानिश

न सियो होंट न ख़्वाबों में सदा दो हम को

एहसान दानिश

मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था

एहसान दानिश

कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर

एहसान दानिश

कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं

एहसान दानिश

आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी

एहसान दानिश

सुनहरी मछली

दीप्ति मिश्रा

डाइरी

दीप्ति मिश्रा

सलोनी शाम के आँगन में जब दो वक़्त मिलते हैं

दीपक क़मर

नज़र आया न कोई भी इधर देखा उधर देखा

दीपक क़मर

वक़्त की सदियाँ

दाऊद ग़ाज़ी

हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ये मो'जिज़ा भी दिखाती है सब्ज़ आग मुझे

दानियाल तरीर

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं

दाग़ देहलवी

इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है

दाग़ देहलवी

बहुत रोया हूँ मैं जब से ये मैं ने ख़्वाब देखा है

दाग़ देहलवी

बात तक करनी न आती थी तुम्हें

दाग़ देहलवी

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं

दाग़ देहलवी

जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं

दाग़ देहलवी

इधर देख लेना उधर देख लेना

दाग़ देहलवी

ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम

दाग़ देहलवी

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