सामने Poetry (page 20)

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया

चरख़ चिन्योटी

कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम

चंद्र प्रकाश शाद

हमें बर्बादियों पे मुस्कुराना ख़ूब आता है

चाँदनी पांडे

एक मुद्दत से उसे देखा नहीं

चाँदनी पांडे

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

रो रहा हूँ आज मैं सारे जहाँ के सामने

बिस्मिल सईदी

ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं

बिस्मिल अज़ीमाबादी

मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो

बिस्मिल अज़ीमाबादी

क़ाबिल-ए-शरह मिरा हाल-ए-दिल-ए-ज़ार न था

बिस्मिल इलाहाबादी

मिरी भी मान मिरा अक्स मत दिखा मुझ को

बिमल कृष्ण अश्क

किधर जाऊँ कहीं रस्ता नहीं है

बिमल कृष्ण अश्क

कभी तो सामने आ बे-लिबास हो कर भी

भवेश दिलशाद

ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल

भारत भूषण पन्त

कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ

भारत भूषण पन्त

ये कह के मेरे सामने टाला रक़ीब को

बेख़ुद देहलवी

पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ

बेख़ुद देहलवी

हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी है

बेख़ुद देहलवी

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए

बहज़ाद लखनवी

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए

बहज़ाद लखनवी

पहले शर्मा के मार डाला

बेदम शाह वारसी

मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं

बेदम शाह वारसी

अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है

बेदम शाह वारसी

या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो क्या किया

बासित भोपाली

सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए

बासित भोपाली

नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले

बासित भोपाली

तू जब सामने होता है

बासिर सुल्तान काज़मी

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