सामने Poetry (page 21)

तुझ को देख रहा हूँ मैं

बासिर सुल्तान काज़मी

सब की मौजूदगी समझता है

बशीर महताब

वो चेहरा किताबी रहा सामने

बशीर बद्र

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है

बशीर बद्र

शाम आँखों में आँख पानी में

बशीर बद्र

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

बशीर बद्र

जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था

बशीर बद्र

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

बड़े ताजिरों की सताई हुई

बशीर बद्र

मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग

बशीरुद्दीन राज़

जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया

बशीरुद्दीन राज़

वो मक़ाम-ए-दिल-ओ-जाँ क्या होगा

बाक़ी सिद्दीक़ी

जुनूँ की राख से मंज़िल में रंग क्या आए

बाक़ी सिद्दीक़ी

कभी तो याद के गुल-दान में सजाऊँ उसे

बाक़र नक़वी

तहलील

बलराज कोमल

इत्तिफ़ाक़

बलराज कोमल

ऐम्बुलेंस

बलराज कोमल

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है

ज़फ़र

ख़बर शाकी है

बद्र वास्ती

नहीं नहीं ये मिरा अक्स हो नहीं सकता

बाबर रहमान शाह

सब दिन एक जैसे नहीं होते

अज़रा अब्बास

बाज़ीगर

अज़रा अब्बास

कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ें

अज़्म बहज़ाद

मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता

अज़्म बहज़ाद

इतने नज़दीक से आईने को देखा न करो

अज़ीज़ वारसी

मैं अपने गिर्द लकीरें बिछाए बैठा हूँ

अज़ीज़ नबील

मैं उस के सामने उर्यां लगूँगी दुनिया को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

वो इक नज़र से मुझे बे-असास कर देगा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ये अपनी बेबसी है या कि अपनी बे-हिसी यारो

अज़ीज़ अन्सारी

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