कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ें
चलता तो बिछड़ जाता रुकता तो सफ़र जाता
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1979) Peoples Rate This
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा
बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ
दिल सोया हुआ था मुद्दत से ये कैसी बशारत जागी है
मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
दरिया पार उतरने वाले ये भी जान नहीं पाए
ख़राबी
उस आँख से वहशत की तासीर उठा लाया
जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी
अजब महफ़िल है सब इक दूसरे पर हँस रहे हैं
कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
शाम आई तो कोई ख़ुश-बदनी याद आई
रौशनी ढूँड के लाना कोई मुश्किल तो न था