मैं उस के सामने उर्यां लगूँगी दुनिया को
वो मेरे जिस्म को मेरा लिबास कर देगा
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एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन
लिया है किस क़दर सख़्ती से अपना इम्तिहाँ हम ने
चराग़ों ने हमारे साए लम्बे कर दिए इतने
मैं रौशनी हूँ तो मेरी पहुँच कहाँ तक है
पड़ा है ज़िंदगी के इस सफ़र से साबिक़ा अपना
चमन पे बस न चला वर्ना ये चमन वाले
शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए
वो मिरा साया मिरे पीछे लगा कर खो गया
इस घर के चप्पे चप्पे पर छाप है रहने वाले की
मैं किस ज़बान में उस को कहाँ तलाश करूँ
हम मता-ए-दिल-ओ-जाँ ले के भला क्या जाएँ
मेरे हालात ने यूँ कर दिया पत्थर मुझ को