शबनम Poetry (page 7)

क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँ

रईस फ़रोग़

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

ख़ूब नासेह की नसीहत का नतीजा निकला

रहमत क़रनी

दर्द तन्हाई का

राही मासूम रज़ा

जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं

राही मासूम रज़ा

वो शबनम का सुकूँ हो या कि परवाने की बेताबी

इक़बाल सुहैल

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

इक़बाल साजिद

ऐसे घर में रह रहा हूँ देख ले बे-शक कोई

इक़बाल साजिद

बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए

इक़बाल अशहर

कहीं शबनम कहीं ख़ुशबू कहीं ताज़ा कली रखना

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

ऐसे पुर-नूर-ओ-ज़िया यार के रुख़्सारे हैं

इमदाद अली बहर

कौन सा तन है कि मिस्ल-ए-रूह इस में तू नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

ग़ैर-निसाबी तारीख़

इलियास बाबर आवान

तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक मुद्दत से सर-ए-दोश-ए-हवा हूँ मैं भी

इफ़्फ़त अब्बास

छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए

इब्न-ए-सफ़ी

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है

हुरमतुल इकराम

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

हमारे शे'र का हासिल तअस्सुरात से है

हयात मदरासी

इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी

हस्तीमल हस्ती

जो बात हक़ीक़त हो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर कहिए

हसीब रहबर

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या

हसन नईम

शहर-ए-ना-पुरसाँ में कुछ अपना पता मिलता नहीं

हसन आबिदी

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