शबनम Poetry (page 9)

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

ग़ालिब

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

ग़ालिब

करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़

ग़ालिब

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

ग़ालिब

जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है

ग़ालिब

गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे

ग़ालिब

अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है

ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

इंतिज़ार-ए-दीद में यूँ आँख पथराई कि बस

ग़व्वास क़ुरैशी

अभी निकलो न घर से तंग आ के

फ़िराक़ जलालपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

फ़िगार उन्नावी

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

कुछ तो मुझे महबूब तिरा ग़म भी बहुत है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मनाज़िर ख़ूब-सूरत हैं

फ़ातिमा हसन

नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा

फ़ारिग़ बुख़ारी

औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ

फ़रहत ज़ाहिद

बिछड़े घर का साया

फ़रहत एहसास

शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है

फ़रीद जावेद

अफ़्साना-ए-शब-रंग

फ़रीद इशरती

यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था

फ़ानी बदायुनी

तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

असली रूप

फख्र ज़मान

याद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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