कविता Poetry (page 6)

वो क़ाफ़िला जो रह-ए-शाएरी में कम उतरा

फ़रहान सालिम

सुराही मुज़्महिल है मय का पियाला थक चुका है

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

ख़याल-ओ-ख़्वाब को परवाज़ देता रहता हूँ

फ़ैय्याज़ रश्क़

सहारे जाने-पहचाने बना लूँ

फ़हमी बदायूनी

एक मेहमाँ का हिज्र तारी है

फ़हमी बदायूनी

परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं

एहसान दानिश

मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है

दिनेश नायडू

तरही ग़ज़ल

दिलावर फ़िगार

लंदन में जश्न-ए-ग़ालिब

दिलावर फ़िगार

कराची का क़ब्रिस्तान

दिलावर फ़िगार

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

इलिएट्स-गर्ल्स-कॉलेज और कुल पाक ओ हिन्द मुशाएरा

दिलावर फ़िगार

न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और है

दिलावर फ़िगार

मैं ने कहा कि शहर के हक़ में दुआ करो

दिलावर फ़िगार

दिल से जब लौ लगी नहीं होती

दीद राही

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

गर तरन्नुम पर ही 'दानिश' मुनहसिर है शाइरी

दानिश अलीगढ़ी

क्या ख़बर थी मुन्हरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे

दानिश अलीगढ़ी

ख़ुशियाँ थीं बेवफ़ा न रहीं ज़िंदगी के साथ

बबल्स होरा सबा

अब इश्क़ रहा न वो जुनूँ है

बिस्मिल सईदी

जाने कितने लोग शामिल थे मिरी तख़्लीक़ में

भारत भूषण पन्त

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

भारत भूषण पन्त

मसरूर भी हूँ ख़ुश भी हूँ लेकिन ख़ुशी नहीं

बहज़ाद लखनवी

नक़्श बर-दीवार

बेबाक भोजपुरी

सरीर-ए-ख़ामा से तशरीह-ए-सिर्र-ए-ज़ी होगी

बेबाक भोजपुरी

कर लिया दिन में काम आठ से पाँच

बासिर सुल्तान काज़मी

सब की मौजूदगी समझता है

बशीर महताब

रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही

बलवान सिंह आज़र

ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है

बद्र-ए-आलम ख़लिश

'मीर'

अज़ीज़ लखनवी

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