शौक Poetry (page 31)

किसी के नर्म तख़ातुब पे यूँ लगा मुझ को

ग़ज़नफ़र

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

जबीन-ए-शौक़ पे गर्द-ए-मलाल चाहती है

ग़ालिब अयाज़

पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का

ग़ालिब

जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए

ग़ालिब

ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं

ग़ालिब

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

ग़ालिब

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो

ग़ालिब

तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था

ग़ालिब

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर

ग़ालिब

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें

ग़ालिब

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

ग़ालिब

कब वो सुनता है कहानी मेरी

ग़ालिब

जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है

ग़ालिब

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

ग़ालिब

हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी

ग़ालिब

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

ग़ालिब

ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ

ग़ालिब

गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है

ग़ालिब

दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया

ग़ालिब

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

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