शौक Poetry (page 32)

बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

ग़ालिब

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

ग़ालिब

अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे

ग़ालिब

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए

ग़ालिब

मता-ए-इश्क़ ज़रा और सर्फ़-ए-नाज़ तो हो

गौहर होशियारपुरी

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं

गौहर होशियारपुरी

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

बंदों का मिज़ाज हम ने देखा

गौहर होशियारपुरी

रिश्ता जिगर का ख़ून-ए-जिगर से नहीं रहा

फ़ुज़ैल जाफ़री

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

उधार

फ़ुर्क़त काकोरवी

तुझे किस तरह छुड़ाऊँ ख़लिश-ए-ग़म-ए-निहाँ से

फ़िज़ा जालंधरी

करम के नाम पे उन का इ'ताब चाहते हैं

फ़ितरत अंसारी

इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं

फ़ितरत अंसारी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या

फ़िराक़ गोरखपुरी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

क़दम अपने हरीम-ए-नाज़ में इस शौक़ से रखना

फ़िगार उन्नावी

मेरी जबीन-ए-शौक़ ने सज्दे जहाँ किए

फ़िगार उन्नावी

किसी अपने से होती है न बेगाने से होती है

फ़िगार उन्नावी

आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी

फ़िगार उन्नावी

ख़राब-हाल हूँ हर हाल में ख़राब रहा

फ़ज़लुर्रहमान

अलमिया-ए-नक़्द

फ़े सीन एजाज़

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