शौक Poetry (page 52)

दिन से बिछड़ी हुई बारात लिए फिरती है

अहमद फ़रीद

हम तिरे शौक़ में यूँ ख़ुद को गँवा बैठे हैं

अहमद फ़राज़

सरहदें

अहमद फ़राज़

इंतिसाब

अहमद फ़राज़

ये आलम शौक़ का देखा न जाए

अहमद फ़राज़

तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही

अहमद फ़राज़

क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता

अहमद फ़राज़

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो

अहमद फ़राज़

चाक-पैराहनी-ए-गुल को सबा जानती है

अहमद फ़राज़

भेद पाएँ तो रह-ए-यार में गुम हो जाएँ

अहमद फ़राज़

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए

अहमद फ़राज़

नज़र बचा के वो हम से गुज़र गए चुप-चाप

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

कर के असीर-ए-ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

हिंसा के पहले मुझे फिर रुला गया इक शख़्स

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं

आग़ा हश्र काश्मीरी

तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे

आग़ा हज्जू शरफ़

जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ

आग़ा हज्जू शरफ़

जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का

आग़ा हज्जू शरफ़

हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए

आग़ा हज्जू शरफ़

चाहिएँ मुझ को नहीं ज़र्रीं क़फ़स की पुतलियाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

गुज़रे तअ'ल्लुक़ात का अब वास्ता न दे

अफ़ज़ल अलवी

ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

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