शौक Poetry (page 51)

मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है

ऐतबार साजिद

मैं हँस रहा था गरचे मिरे दिल में दर्द था

ऐश बर्नी

यहाँ के रंग बड़े दिल-पज़ीर हुए हैं

ऐन ताबिश

ताबिश ये भला कौन सी रुत आई है जानी

ऐन ताबिश

प्यास बढ़ती हुई ता-हद्द-ए-नज़र पानी था

ऐन ताबिश

मुझ को ना-कर्दा गुनह का मो'तरिफ़ होना पड़ा

ऐन ताबिश

क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो

अहसन मारहरवी

इल्म की ज़रूरत

अहमक़ फफूँदवी

ज़माना हो गया है ख़्वाब देखे

अहमद शनास

ज़माना हो गया है ख़्वाब देखे

अहमद शनास

मेरी रातों का सफ़र तूर नहीं हो सकता

अहमद शनास

ख़ुद अपनी ज़ात से इक मुक़तदी निकालता हूँ

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

आसमाँ-ज़ाद ज़मीनों पे कहीं नाचते हैं

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

ज़िंदगी ग़म की आँच सह कोई

अहमद रियाज़

ब-वस्फ़-ए-शौक़ भी दिल का कहा नहीं करते

अहमद रियाज़

ब वस्फ़-ए-शौक़ भी दिल का कहा नहीं करते

अहमद रियाज़

तन्हाइयों के दश्त में अक्सर मिला मुझे

अहमद राही

सिर्फ़ इस शौक़ से पूछी हैं हज़ारों बातें

अहमद नदीम क़ासमी

तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ

अहमद नदीम क़ासमी

शुऊर में कभी एहसास में बसाऊँ उसे

अहमद नदीम क़ासमी

उदास कर के दरीचे नए मकानों के

अहमद मुश्ताक़

शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया

अहमद मुश्ताक़

कहीं उम्मीद सी है दिल के निहाँ ख़ाने में

अहमद मुश्ताक़

अजब नहीं कभी नग़्मा बने फ़ुग़ाँ मेरी

अहमद मुश्ताक़

नहीं आसमाँ तिरी चाल में नहीं आऊँगा

अहमद महफ़ूज़

किसी से क्या कहें सुनें अगर ग़ुबार हो गए

अहमद महफ़ूज़

छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ

अहमद महफ़ूज़

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट

अहमद हुसैन माइल

क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का

अहमद हुसैन माइल

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