प्रतिष्ठा Poetry (page 2)

क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले

ज़ौक़

कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है

ज़ौक़

हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

इश्क़ की मेरे जो शोहरत हो गई

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी

शीन काफ़ निज़ाम

कभी जंगल कभी सहरा कभी दरिया लिख्खा

शीन काफ़ निज़ाम

इक जफ़ा-जू से मोहब्बत हो गई

शौक़ बहराइची

ग़म दिए हैं तो मसर्रत के गुहर भी देना

शम्स रम्ज़ी

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

शकील आज़मी

मुजरिम

शकेब जलाली

निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए

शहरयार

मैं वापस आऊँगा

शहराम सर्मदी

एक इक मौज को सोने की क़बा देती है

शाहिद लतीफ़

सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल

शाहिद कमाल

सब हैं मसरूफ़ किसी को यहाँ फ़ुर्सत नहीं है

शाहिद कमाल

मोहब्बत में न जाने क्यूँ हमें फ़ुर्सत ज़ियादा है

शाहीन अब्बास

अक्सर अपने दर-पए-आज़ार हो जाते हैं हम

शबनम शकील

कीजिए और सवालात न ज़ाती मुझ से

शबनम रूमानी

औरत

शाद आरफ़ी

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं मुझे

सरदार सोज़

लफ़्ज़ों का ये ख़ज़ाना तिरे नाम कब हुआ

सदार आसिफ़

अलकुबड़े

साक़ी फ़ारुक़ी

मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली

साक़ी फ़ारुक़ी

वो जुनूँ को बढ़ाए जाएँगे

सलीम अहमद

दीदनी है हमारी ज़ेबाई

सलीम अहमद

क्या मिला ऐ ज़िंदगी क़ानून-ए-फ़ितरत से मुझे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हम-अस्र

साहिर लुधियानवी

मुसव्विर अपने तसव्वुर का ढूँढता है दवाम

सईदुल ज़फर चुग़ताई

जहाँ में जिस की शोहरत कू-ब-कू है

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं

सबा अकबराबादी

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