प्रतिष्ठा Poetry (page 3)

हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द

रियाज़ ख़ैराबादी

गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे

रिफ़अत सरोश

सवाद-ए-शहर में थोड़ी सी ये जो जन्नत है

रज़ा अश्क

शाम-ए-ग़म की है अता सुब्ह-ए-मसर्रत दी है

रौनक़ रज़ा

लाव-लश्कर जाह-ओ-हशमत है यहाँ

रसूल साक़ी

शुरूअ' अहल-ए-मोहब्बत के इम्तिहान हुए

रशीद लखनवी

लो शुरूअ नफ़रत हुई

रमेश कँवल

ऐ ख़ुदा तू ही मुझे चाहने वाला देना

राम दास

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रक्खा गया

रख़्शंदा नवेद

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रखा गया

रख़्शंदा नवेद

न क़ाएल होते हैं न ज़ाइल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

लिबास उस का अलामत की तरह था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ये ज़र्द चेहरा ये दर्द-ए-पैहम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा

रईस सिद्दीक़ी

अब तू दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतार

इक़बाल साजिद

इक तबीअत थी सो वो भी ला-उबाली हो गई

इक़बाल साजिद

न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत

इक़बाल अशहर

वो जो कहीं नहीं है

इंजिला हमेश

बैलन्स-शीट

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुल्क-ए-सुख़न में दर्द की दौलत को क्या हुआ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरी मोहब्बत की बे-ख़ुदी को तलाश-ए-हक़्क़-ए-जलाल देना

इफ़्फ़त अब्बास

मिरे ही दिल को अपना घर समझना

इबरत बहराईची

चाहे सहरा में चाहे घर रहना

इबरत बहराईची

मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था

इब्राहीम अश्क

गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने न दिया

हसन नईम

वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

सर उठा कर न कभी देखा कहाँ बैठे थे

हसन कमाल

देखूँ वो करती है अब के अलम-आराई कि मैं

हसन अज़ीज़

देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग

हनीफ़ अख़गर

मुझ को मरने की कोई उजलत न थी

हामिदी काश्मीरी

दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

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