गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने न दिया
कोई एहसान ज़माने का उठाया ही नहीं
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
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कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे
जुरअत कहाँ कि अपना पता तक बता सकूँ
यही तो ग़म है वो शाइ'र न वो सियाना था
ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या
इतना रोया हूँ ग़म-ए-दोस्त ज़रा सा हँस कर
गया वो ख़्वाब-ए-हक़ीक़त को रू-ब-रू कर के
निदा-ए-तख़्लीक़
लुत्फ़-ए-आग़ाज़ मिला लज़्ज़त-ए-अंजाम के बा'द
आ बसे कितने नए लोग मकान-ए-जाँ में
मिला न काम कोई उम्र-भर जुनूँ के सिवा
जहाँ दिखाई न देता था एक टीला भी
क़सीदा तुझ से ग़ज़ल तुझ से मर्सिया तुझ से