जुरअत कहाँ कि अपना पता तक बता सकूँ
जीता हूँ अपने मुल्क में औरों के नाम से
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एक दरख़्त एक तारीख़
आ बसे कितने नए लोग मकान-ए-जाँ में
करें न याद शब-ए-हादिसा हुआ सो हुआ
रूह का लम्बा सफ़र है एक भी इंसाँ का क़ुर्ब
सच तो ये कि अभी दिल को सुकूँ है लेकिन
मैं अपनी रूह में उस को बसा चुका इतना
इश्क़ के बाब में किरदार हूँ दीवाने का
माल-ओ-मता-ए-दश्त सराबों को दे दिया
मैं एक बाब था अफ़साना-ए-वफ़ा का मगर
ख़ेमा-ए-याद
मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे
तशवीश