सच तो ये कि अभी दिल को सुकूँ है लेकिन
अपने आवारा ख़यालात से जी डरता है
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जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए
इश्क़ के बाब में किरदार हूँ दीवाने का
बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे
ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी
वो कज-निगाह न वो कज-शिआ'र है तन्हा
किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है
कम नहीं ऐ दिल-ए-बेताब मता-ए-उम्मीद
मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे
ख़्वाब की राह में आए न दर-ओ-बाम कभी
किसी ने डूबती सुब्हों तड़पती शामों को
कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया
जहाँ दिखाई न देता था एक टीला भी