जहाँ दिखाई न देता था एक टीला भी
वहाँ से लोग उठा कर पहाड़ लाए हैं
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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Parveen Shakir
Wasi Shah
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे
ना-उमीदी ने यूँ सताया था
रूह का लम्बा सफ़र है एक भी इंसाँ का क़ुर्ब
पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी
किसी ने डूबती सुब्हों तड़पती शामों को
सच तो ये कि अभी दिल को सुकूँ है लेकिन
क़ल्ब-ओ-जाँ में हुस्न की गहराइयाँ रह जाएँगी
कम नहीं ऐ दिल-ए-बेताब मता-ए-उम्मीद
'इक़बाल' की नवा से मुशर्रफ़ है गो 'नईम'
तशवीश
जो ग़म के शो'लों से बुझ गए थे हम उन के दाग़ों का हार लाए
मैं अपनी रूह में उस को बसा चुका इतना