मैं अपनी रूह में उस को बसा चुका इतना
अब उस का हुस्न भी पर्दा दिखाई देता है
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उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी
ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी
ख़्वाब की राह में आए न दर-ओ-बाम कभी
आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी
सरा-ए-दिल में जगह दे तो काट लूँ इक रात
दिलों में आग लगाओ नवा-कशी ही करो
कोह के सीने से आब-ए-आतशीं लाता कोई
क़ल्ब-ओ-जाँ में हुस्न की गहराइयाँ रह जाएँगी
बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे
तशवीश
पयम्बरों ने कहा था कि झूट हारेगा