पयम्बरों ने कहा था कि झूट हारेगा
मगर ये देखिए अपना मुशाहिदा क्या है
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ऐ सबा मैं भी था आशुफ़्ता-सरों में यकता
दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है
ना-उमीदी ने यूँ सताया था
ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है
ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या
चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह
मुझ को कोई भी सिला मिलने में दुश्वारी न थी
मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ
मैं अपनी रूह में उस को बसा चुका इतना
लुत्फ़-ए-आग़ाज़ मिला लज़्ज़त-ए-अंजाम के बा'द
दिल वो किश्त-ए-आरज़ू था जिस की पैमाइश न की