ऐ सबा मैं भी था आशुफ़्ता-सरों में यकता
पूछना दिल्ली की गलियों से मिरा नाम कभी
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दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे
जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए
मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे
पय-ब-पय तलवार चलती है यहाँ आफ़ात की
वहशत-ए-जाँ को पयाम-ए-निगह-ए-नाज़ तो दो
उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी
बे-इल्तिफ़ाती
बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे
क़ल्ब-ओ-जाँ में हुस्न की गहराइयाँ रह जाएँगी
ख़ेमा-ए-याद
चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह
कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे