पय-ब-पय तलवार चलती है यहाँ आफ़ात की
दस्त-ओ-बाज़ू की ख़बर लूँ तो समझिए सर गया
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ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है
माल-ओ-मता-ए-दश्त सराबों को दे दिया
सुब्ह-ए-तरब तो मस्त-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गई
दिलों में आग लगाओ नवा-कशी ही करो
एक भी हर्फ़ न था ख़ुश-ख़बरी का लिक्खा
याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा
लुत्फ़-ए-आग़ाज़ मिला लज़्ज़त-ए-अंजाम के बा'द
कोई मौसम हो यही सोच के जी लेते हैं
कोह के सीने से आब-ए-आतशीं लाता कोई
जब्र-ए-शही का सिर्फ़ बग़ावत इलाज है