पय-ब-पय तलवार चलती है यहाँ आफ़ात की
दस्त-ओ-बाज़ू की ख़बर लूँ तो समझिए सर गया
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जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं
ख़ल्वत-ए-उम्मीद में रौशन है अब तक वो चराग़
आ बसे कितने नए लोग मकान-ए-जाँ में
न मेरे ख़्वाब को पैकर न ख़द्द-ओ-ख़ाल दिया
क्या फ़िराक़ ओ फ़ैज़ से लेना था मुझ को ऐ 'नईम'
जुरअत कहाँ कि अपना पता तक बता सकूँ
ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है
उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं
वो कज-निगाह न वो कज-शिआ'र है तन्हा
निदा-ए-तख़्लीक़
बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे
एक दरिया पार कर के आ गया हूँ उस के पास