लुत्फ़-ए-आग़ाज़ मिला लज़्ज़त-ए-अंजाम के बा'द

लुत्फ़-ए-आग़ाज़ मिला लज़्ज़त-ए-अंजाम के बा'द

हौसला दिल का बढ़ा कोशिश-ए-नाकाम के बा'द

अब ख़ुदा जाने तुझे भी है तअ'ल्लुक़ कि नहीं

लोग लेते हैं मिरा नाम तिरे नाम के बा'द

मय-कदा था तो वहीं रोज़ चला जाता था

अब कहाँ कोई ठिकाना है मिरा शाम के बा'द

कोई आया ही नहीं कू-ए-वफ़ा तक वर्ना

कुछ भी मुश्किल नहीं ये राह दो इक गाम के बा'द

एक दो घूँट बहुत तल्ख़ है मय की लेकिन

लुत्फ़ आएगा तुझे शैख़ दो इक जाम के बा'द

वक़्त कटता रहा कटती रहीं राहें लेकिन

हम ने मुड़ मुड़ के तुम्हें देखा हर इक गाम के बा'द

कुछ तो साक़ी से गिला होगा 'हसन' को वर्ना

कौन मय-ख़ाने से उठता है दो इक जाम के बा'द

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