लौ Poetry (page 8)

ख़ुश्क पत्तों में किसी याद का शोला है 'सईद'

सईद अहमद

जब समाअत तिरी आवाज़ तलक जाती है

सईद अहमद

नज़र नज़र से वो कलियाँ खिला खिला भी गया

सादिक़ नसीम

इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई

रूही कंजाही

इक परी का फिर मुझे शैदा किया

रिन्द लखनवी

न फूल हूँ न सितारा हूँ और न शो'ला हूँ

रिफ़अत सरोश

बुझा बुझा के जलाता है दिल का शो'ला कौन

रिफ़अत सरोश

कौन कहाँ तक जा सकता है

रेहाना रूही

ख़्वाबों की इक भीड़ लगी है जिस्म बेचारा नींद में है

राज़ी अख्तर शौक़

ज़ुल्फ़ खोले था कहाँ अपनी वो फिर बेबाक रात

रज़ा अज़ीमाबादी

टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा

रज़ा अज़ीमाबादी

हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

कहने को सब फ़साना-ए-ग़ैब-ओ-शुहूद था

रविश सिद्दीक़ी

इश्क़ की शरह-ए-मुख़्तसर के लिए

रविश सिद्दीक़ी

आज़ार-ए-दिल से रंग-ए-तबीअ'त बदल गया

रऊफ़ यासीन जलाली

हवा के लम्स से भड़का भी हूँ मैं

राशिद मुफ़्ती

साया था मेरा और मिरे शैदाइयों में था

राशिद आज़र

ख़ुश्की पे रहूँगी कभी पानी में रहूँगी

राशिदा माहीन मलिक

दिल की बे-इख़्तियारियाँ न गईं

रशीद रामपुरी

मैं ने कहीं थीं आप से बातें भली भली

रशीद क़ैसरानी

कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह

राना सहरी

मसअला ये भी ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ आसाँ हो गया

राम कृष्ण मुज़्तर

लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शो'ला अयाँ न हो

रजब अली बेग सुरूर

लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो

रजब अली बेग सुरूर

जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए

रईस फ़रोग़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

देर तक मैं तुझे देखता भी रहा

रईस फ़रोग़

तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू

रईस अमरोहवी

शमीम-ए-गेसू-ए-मुश्कीन-ए-यार लाई है

रईस अमरोहवी

दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

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