लौ Poetry (page 10)

कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया

हसन नईम

चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह

हसन नईम

चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह

हसन नईम

नसीम-ए-सुब्ह-ए-बहार आए दिल-ए-हज़ीं को क़रार आए

हनीफ़ फ़ौक़

यादों का शहर-ए-दिल में चराग़ाँ नहीं रहा

हनीफ़ अख़गर

आँखें

हामिदी काश्मीरी

तबस्सुम में न ढल जाता गुदाज़ ग़म तो क्या करते

हमीद नागपुरी

रख दिया है मिरी दहलीज़ पे पत्थर किस ने

हमीद अलमास

भेजता हूँ हर रोज़ मैं जिस को ख़्वाब कोई अन-देखा सा

हकीम मंज़ूर

बयाबाँ-ज़ाद कोई क्या कहे ख़ुद बे-मकाँ है

हकीम मंज़ूर

इर्तिकाब-ए-जुर्म शर की बात है

हैदर अली जाफ़री

हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का

हैदर अली आतिश

इक दर्द सा पहलू में मचलता है सर-ए-शाम

हफ़ीज़ ताईब

आज यूँ दर्द तिरा दिल के उफ़ुक़ पर चमका

हाफ़िज़ लुधियानवी

आख़िरी रात

हफ़ीज़ जालंधरी

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

हबीब जालिब

शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ

हबीब जालिब

फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल

हबीब जालिब

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

हबीब मूसवी

मौज-ए-अन्फ़ास भी इक तेग़-ए-रवाँ हो जैसे

हबीब अशअर देहलवी

याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था

गुलनार आफ़रीन

है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए

गोपालदास नीरज

शब-ताब

गोपाल मित्तल

कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही

ग़ुलाम भीक नैरंग

ज़मीं के साथ फ़लक के सफ़र में हम भी हैं

ग़यास मतीन

तीर जैसे कमान से निकला

ग़नी एजाज़

उस शो'ला-रू से जब से मिरी आँख जा लगी

ग़मगीन देहलवी

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