सोच Poetry (page 10)

ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं

सबा अकबराबादी

क्यूँ न हम सोच के साँचे में ही ढल कर देखें

सादुल्लाह शाह

यूँ आज अपने-आप से उलझा हुआ हूँ मैं

रूही कंजाही

चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ

रूही कंजाही

नादान दिल-फ़रेब मोहब्बत न खा कभी

रिफ़अत सुलतान

अब कहीं साया-ए-गेसू भी नहीं

रिफ़अत सुलतान

न फूल हूँ न सितारा हूँ और न शो'ला हूँ

रिफ़अत सरोश

बुझा बुझा के जलाता है दिल का शो'ला कौन

रिफ़अत सरोश

निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा

रियाज़ मजीद

ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं

रेनू नय्यर

ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं

रेनू नय्यर

मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

ये सोच कर न फिर कभी तुझ को पुकारा दोस्त

रेहाना रूही

दुनिया-दारी से ना-वाक़िफ़ कैसा पागल लड़का था

रज़्ज़ाक़ अरशद

यूँ खुले बंदों मोहब्बत का न चर्चा करना

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

शायद अब रूदाद-ए-हुनर में ऐसे बाब लिखे जाएँगे

राज़ी अख्तर शौक़

संग हैं नावक-ए-दुश्नाम हैं रुस्वाई है

राज़ी अख्तर शौक़

कैसे इस शहर में रहना होगा

राज़ी अख्तर शौक़

इश्क़ ख़ुद अपनी जगह मज़हर-ए-अनवार-ए-ख़ुदा

रविश सिद्दीक़ी

हम मय-कशों के क़दमों पर अक्सर

रविश सिद्दीक़ी

बादा-ए-गुल को सब अंदोह-रुबा कहते हैं

रविश सिद्दीक़ी

दिल तक हो चाक तेग़ जो सर पर लगाइए

रौनक़ टोंकवी

कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा

रउफ़ ख़लिश

ता-ब-कै मंज़िल-ब-मंज़िल हम मुसाफ़िर भागते

रऊफ़ ख़ैर

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

गर्म हर लम्हा लहू जिस्म के अंदर रखना

रासिख़ इरफ़ानी

अब ज़ीस्त मिरे इम्कान में है

राशिद नूर

महफ़िल में तो बस वो सज रहा है

राशिद मुफ़्ती

प्यारा सा ख़्वाब नींद को छू कर गुज़र गया

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

ये सोच कर मैं रुका था कि तू पुकारेगा

राशिद अनवर राशिद

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