सोच Poetry (page 7)

भटक रही है अंधेरों में आँख देखे क्या

शाहिद माहुली

इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

शाहिद कमाल

इस सोच में ज़िंदगी बिता दी

शाहिद कबीर

पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ

शाहिद कबीर

नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है

शाहिद कबीर

चाँद माँगा न कभी हम ने सितारे माँगे

शाहिद अख़्तर

शहर-ए-ख़ूबाँ से जो हम अब भी गुज़र आते हैं

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

क़ुबूल है ग़म-ए-दुनिया तिरे हवाले से

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

इक कार-ए-गराँ है खेल नहीं

शफ़ीक़ देहलवी

सिमट न पाए कि हर-सू बिखर गए थे हम

शबनम शकील

सामने इक बे-रहम हक़ीक़त नंगी हो कर नाचती है

शबनम शकील

मंज़र से कभी दिल के वो हटता ही नहीं है

शबनम शकील

नज़्म

शबनम अशाई

इक यही सोच बिछड़ने नहीं देती तुझ से

शबाना यूसुफ़

ये अपने आप पे ताज़ीर कर रही हूँ मैं

शबाना यूसुफ़

हम अगर सच के उन्हें क़िस्से सुनाने लग जाएँ

शबाना यूसुफ़

सहरा की बे-आब ज़मीं पर एक चमन तय्यार किया

शायर लखनवी

इधर मौसम की ये ख़ुश-एहतिमामी

शानुल हक़ हक़्क़ी

औरत

शाद आरफ़ी

मुस्तक़बिल रौशन-तर कहिए

शाद आरफ़ी

किताब-ए-उम्र में इक वो भी बाब होता है

सीमाब सुल्तानपुरी

उन्हें अब कोई आइना दीजिए

सीमा शर्मा सरहद

संजीदगी की ख़ास ज़रूरत तो है नहीं

सौरभ शेखर

हिर्स-ओ-हवस के नाम ये दिन रात की तलब

सौरभ शेखर

अपनी हम-ज़ाद के लिए

सरवत ज़ेहरा

ज़मानों से दर-ए-इम्कान पर रक्खे हुए हैं

सरवर अरमान

इक अजब कैफ़ियत-ए-होश-रुबा तारी थी

सरवर अरमान

दश्त ले जाए कि घर ले जाए

सरवत हुसैन

हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है

सरफ़राज़ ख़ालिद

टूट के पत्थर गिरते रहते हैं दिन रात चटानों से

सरफ़राज़ आमिर

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