सूरज Poetry (page 4)

वो क्या दिन थे जो क़ातिल-बिन दिल-ए-रंजूर रो देता

वली उज़लत

वक़्त बोसे के मिरा मुँह उस के लब से जूँ जुड़ा

वली उज़लत

तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ

वली मोहम्मद वली

लजयाई से नाज़ुक है ऐ जान बदन तेरा

वाजिद अली शाह अख़्तर

आरियों की पहली आमद हिन्दोस्तान में

वहीदुद्दीन सलीम

जिस जगह भी मिला घना साया

विश्वनाथ दर्द

जुनूँ की पैरवी से ख़ुश नहीं हूँ

विकास शर्मा राज़

तिरे ग़ुरूर मिरे ज़ब्त का सवाल रहा

विजय शर्मा अर्श

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

विजय शर्मा अर्श

फ़सील-ए-रेग पर इतना भरोसा कर लिया तुम ने

वली मदनी

नई सहर है ये लोगो नया सवेरा है

वफ़ा मलिकपुरी

अक्सर तन्हाई से मिल कर रोए हैं

उषा भदोरिया

जाने किस मोड़ पे ले आई हमें तेरी तलब

उम्मीद फ़ाज़ली

वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है

उम्मीद फ़ाज़ली

नज़र न आए तो क्या वो मिरे क़यास में है

उम्मीद फ़ाज़ली

हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ

तिश्ना बरेलवी

क्या बताऊँ कि है किस ज़ुल्फ़ का सौदा मुझ को

तौसीफ़ तबस्सुम

अजीब रंग थे दिल में जो आँसुओं में न थे

तौसीफ़ तबस्सुम

रेआया ज़ुल्म पे जब सर उठाने लगती है

तारिक़ क़मर

इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं था

तारिक़ नईम

मुझे भी नीम के जैसा न कर दे

तनवीर गौहर

चढ़ता सूरज उड़ता बादल बहता दरिया कुछ भी नहीं

तनवीर गौहर

अजीब शख़्स है पत्थर से पर बनाता है

तनवीर अहमद अल्वी

जलना हो तो मुझ से जल

तन्हा तिम्मापुरी

धूप जब तक सर पे थी ज़ेर-ए-क़दम पाए गए

तालिब जोहरी

माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या ख़ून-ए-जिगर के सामने

तालिब हुसैन तालिब

तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए

तहसीन फ़िराक़ी

में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे

ताहिर फ़राज़

कोई हसीं मंज़र आँखों से जब ओझल हो जाएगा

ताहिर फ़राज़

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