सुबह की सुबह Poetry (page 18)

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

सबा अख़्तर

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

जताते रहते हैं ये हादसे ज़माने के

साइल देहलवी

अब तो यूँ लब पे मिरे हर्फ़-ए-सदाक़त आए

रूही कंजाही

क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ

रियाज़ ख़ैराबादी

कहना किसी का सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल नाज़ से

रियाज़ ख़ैराबादी

ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का

रियाज़ ख़ैराबादी

उतरी है आसमाँ से जो कल उठा तो ला

रियाज़ ख़ैराबादी

परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है

रियाज़ ख़ैराबादी

पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे

रियाज़ ख़ैराबादी

मतलब की बात शक्ल से पहचान जाइए

रियाज़ ख़ैराबादी

हम भी पिएँ तुम्हें भी पिलाएँ तमाम रात

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

ज़ुल्फ़ें छोड़ीं हैं कि जोड़ा उस ने छोड़ा साँप का

रिन्द लखनवी

नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़

रिन्द लखनवी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

पहली बरसात की घटा छाई

रिफ़अत अल हुसैनी

इन्ही सुब्हों में वो इक सुब्ह-ए-नवा याद करो

रिफ़अत अब्बास

जो सैल-ए-दर्द उठा था वो जान छोड़ गया

रियाज़ मजीद

छुपे हुए थे जो नक़्द-ए-शुऊ'र के डर से

रियाज़ मजीद

सेल्फ़ी

रहमान फ़ारिस

यही दुआ है यही है सलाम इश्क़ ब-ख़ैर

रहमान फ़ारिस

मैं ने तुम्हें चलना सिखाया था

रेहाना रूही

कुंज-ए-इज़्ज़त से उठो सुब्ह-ए-बहाराँ देखो

रज़ी तिर्मिज़ी

शब का सफ़र

रज़ी रज़ीउद्दीन

इन्ही गलियों में इक ऐसी गली है

राज़ी अख्तर शौक़

ऐ सुब्ह-ए-उमीद देर क्या है

राज़ी अख्तर शौक़

इस तरह आँखों को नम दिल पर असर करते हुए

रज़ा मौरान्वी

ख़याल-ए-हुस्न में यूँ ज़िंदगी तमाम हुई

रज़ा लखनवी

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