सुबह की सुबह Poetry (page 43)

इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता

अहमद अता

हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से

अहमद अता

चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की

आग़ा हश्र काश्मीरी

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

मौसम-ए-गुल में जो घिर घिर के घटाएँ आईं

आग़ा हज्जू शरफ़

रह-ए-सुलूक में बल डालने पे रहता है

अफ़ज़ाल नवेद

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

अफ़ज़ाल नवेद

ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो

अफ़ज़ल इलाहाबादी

आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं

आफ़ताब शाह आलम सानी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ

आफ़ताब हुसैन

असर देखा दुआ जब रात भर की

अफ़सर मेरठी

आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है

अफ़सर मेरठी

उन से हर हाल में तुम सिलसिला-जुम्बाँ रखना

अफ़सर माहपुरी

ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस

अफ़रोज़ आलम

ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस

अफ़रोज़ आलम

शबनम की तरह सुब्ह की आँखों में पड़ा है

अफ़रोज़ आलम

जिगर को ख़ून किए दिल को बे-क़रार अभी

अफ़रोज़ आलम

दुश्मनों को मिरे हमराज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम

बड़ा ख़ुशनुमा ये मक़ाम है नई ज़िंदगी की तलाश कर

अफ़रोज़ आलम

अत्तार के मस्कन में ये कैसी उदासी है

अफ़रोज़ आलम

हम अहल-ए-नज़ारा शाम-ओ-सहर आँखों को फ़िदया करते हैं

अफ़ीफ़ सिराज

आमीन

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

साज़-ए-सुख़न बहाना है

अदा जाफ़री

होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए

अदा जाफ़री

आँखों में रूप सुब्ह की पहली किरन सा है

अदा जाफ़री

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