सुबह की सुबह Poetry (page 41)

होंटों पे क़र्ज़-ए-हर्फ़-ए-वफ़ा उम्र भर रहा

अख़्तर होशियारपुरी

दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुस्वा न करो

अख़्तर होशियारपुरी

शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही

अख़्तर अंसारी

ये सनम रिवायत-ओ-नक़्ल के हुबल-ओ-मनात से कम नहीं

अख़्तर अंसारी

सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम

अख़्तर अंसारी

जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए

अख़्तर अंसारी

इधर चराग़ जल गए उधर चराग़ जल गए

अख़लाक़ बन्दवी

फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए

अख़लाक़ बन्दवी

जला के दिल को रखा सुब्ह-ओ-शाम रोज़-ओ-शब

अख़लाक़ अहमद आहन

जुनून-ए-इश्क़ का जो कुछ हुआ अंजाम क्या कहिए

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

उस ख़ुश-अदा के आइना-ख़ाने में जाऊँगा

अकबर मासूम

ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ

अकबर हैदराबादी

जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा

अकबर हैदराबादी

दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से

अकबर हैदराबादी

तमाम आलम-ए-इम्काँ मिरे गुमान में है

अकबर हमीदी

जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली

अकबर इलाहाबादी

बर्क़-ए-कलीसा

अकबर इलाहाबादी

मिल गया शरअ से शराब का रंग

अकबर इलाहाबादी

किया है मैं ने तआ'क़ुब वो सुब्ह-ओ-शाम अपना

अकबर अली खान अर्शी जादह

शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़

अजमल सिराज

हर एक सुब्ह वज़ू करती हैं मिरी आँखें

अजमल सिद्दीक़ी

दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र

अजमल सिद्दीक़ी

कितनी तवील क्यूँ न हो बातिल की ज़िंदगी

अजमल अजमली

दो पल के हैं ये सब मह ओ अख़्तर न भूलना

अजमल अजमली

ये किस लिए है तू इतना उदास दरवाज़े

अजीत सिंह हसरत

ये बरसों का तअल्लुक़ तोड़ देना चाहते हैं हम

ऐतबार साजिद

बंद दरीचे सूनी गलियाँ अन-देखे अनजाने लोग

ऐतबार साजिद

ऐ शम्अ सुब्ह होती है रोती है किस लिए

ऐश देहलवी

मुझी में जीता है सूरज तमाम होने तक

ऐनुद्दीन आज़िम

रात अभी आधी गुज़री है

ऐन ताबिश

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