सुबह की सुबह Poetry (page 2)

तिरा ख़याल फ़रोज़ाँ है देखिए क्या हो

ज़ेहरा निगाह

क्यूँ ऐ ग़म-ए-फ़िराक़ ये क्या बात हो गई

ज़ेहरा निगाह

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

सय्याह

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

ख़त

ज़ीशान साहिल

जनरल-साहिब की नाक

ज़ीशान साहिल

जगह

ज़ीशान साहिल

फ़ुट-पाथ के लोग

ज़ीशान साहिल

दीवार और चिड़िया

ज़ीशान साहिल

चिड़ियाँ

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

उजड़ी हुई बस्ती की सुब्ह ओ शाम ही क्या

ज़ेब ग़ौरी

बहार कौन सी तुझ में जमाल-ए-यार न थी

ज़ेब ग़ौरी

सियह बिस्तर पड़े हैं सुब्ह-ए-नज़्ज़ारा उतर आए

ज़काउद्दीन शायाँ

रात याद-ए-निगह-ए-यार ने सोने न दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

शब-ए-व'अदा फ़सील-ए-हिज्र से आगे चमकता है तिरा इस्म-ए-सितारा-जू

ज़ाहिद मसूद

अजब क्या है रहे उस पार बहते जुगनुओं की रौशनी तहलील की ज़द में

ज़ाहिद मसूद

अधूरी मौत कर कर्ब

ज़ाहिद इमरोज़

क़सम उस बदन की

ज़ाहिद हसन

इतने चेहरों में मुझे है एक चेहरे की तलाश

ज़हीर सिद्दीक़ी

हाँ वो मैं ही था कि जिस ने ख़्वाब ढोया सुब्ह तक

ज़हीर सिद्दीक़ी

मौसम बदला रुत गदराई अहल-ए-जुनूँ बेबाक हुए

ज़हीर काश्मीरी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें

ज़हीर काश्मीरी

जमाल पा के तब-ओ-ताब-ए-ग़म यगाना हुआ है

ज़हीर फ़तेहपूरी

बुझाऊँ क्या चराग़-ए-सुब्ह-गाही

ज़हीर देहलवी

आँसू फ़लक की आँख से टपके तमाम रात

ज़हीर अहमद ज़हीर

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