सुबह की सुबह Poetry (page 21)

सफ़र में कोई रुकावट नहीं गदा के लिए

रईस अमरोहवी

'रईस' हम जो सू-ए-कूचा-ए-हबीब चले

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

रईस अमरोहवी

दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ

रईस अमरोहवी

बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दिल छोड़ के हर राहगुज़र ढूँढ रहा हूँ

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

न शिकवे हैं न फ़रियादें न आहें हैं न नाले हैं

राही शहाबी

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

जितने वहशी हैं चले जाते हैं सहरा की तरफ़

राही मासूम रज़ा

ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं

इरफ़ान सत्तार

एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे

इक़बाल उमर

ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला

इक़बाल साजिद

ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला

इक़बाल साजिद

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

करें हिजरत तो ख़ाक-ए-शहर भी जुज़-दान में रख लें

इक़बाल कौसर

अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे

इक़बाल अज़ीम

बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का

इक़बाल अशहर

घड़ी में अक्स-ए-इंसाँ

इंतिख़ाब अालम

कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं

इन्तेसार हुसैन आबिदी शाहिद

नज़ाकत उस गुल-ए-राना की देखियो 'इंशा'

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

फबती तिरे मुखड़े पे मुझे हूर की सूझी

इंशा अल्लाह ख़ान

जिला

इंजिला हमेश

अन-देखी ज़मीं पर

इंजिला हमेश

मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे

इन्दिरा वर्मा

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

इमरान हुसैन आज़ाद

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