केक Poetry (page 17)

हर सुख़न में वो सेहर करते हैं

हसन बरेलवी

जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं

हसन अख्तर जलील

आसार-ए-क़दीमा से निकला एक नविश्ता

हसन अब्बास रज़ा

ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही

हसन आबिद

हुस्न-ए-मुख़्तार सही इश्क़ भी मजबूर नहीं

हसन आबिद

आह-ओ-फ़रियाद से मा'मूर चमन है कि जो था

हनीफ़ फ़ौक़

किसी के जौर-ए-मुसलसल का फ़ैज़ है 'अख़्गर'

हनीफ़ अख़गर

बज़्म को रंग-ए-सुख़न मैं ने दिया है 'अख़्गर'

हनीफ़ अख़गर

हाल-ए-दिल-ए-बीमार समझ में चारागरों की आए कम

हनीफ़ अख़गर

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए

हम्माद नियाज़ी

शाम से ज़ोरों पे तूफ़ाँ है बहुत

हामिदी काश्मीरी

मआल-ए-दिल के लिए आज यूँ ख़ुदी तरसे

हामिद मुख़्तार हामिद

कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

घर है तो दर भी होगा दीवार भी रहेगी

हमीद अलमास

सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है

हकीम मंज़ूर

बयाबाँ-ज़ाद कोई क्या कहे ख़ुद बे-मकाँ है

हकीम मंज़ूर

ये महव हुए देख के बे-साख़्ता-पन को

हैरत इलाहाबादी

न सर छुपाने को घर था न आब-ओ-दाना था

हैदर अली जाफ़री

आदमी क्या वो न समझे जो सुख़न की क़द्र को

हैदर अली आतिश

वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम

हैदर अली आतिश

रुख़ ओ ज़ुल्फ़ पर जान खोया किया

हैदर अली आतिश

जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़

हैदर अली आतिश

चमन में रहने दे कौन आशियाँ नहीं मा'लूम

हैदर अली आतिश

आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का

हैदर अली आतिश

ये सब कहने की बातें हैं कि ऐसा हो नहीं सकता

हफ़ीज़ जौनपुरी

यही मसअला है जो ज़ाहिदो तो मुझे कुछ इस में कलाम है

हफ़ीज़ जौनपुरी

कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था

हफ़ीज़ जौनपुरी

इधर होते होते उधर होते होते

हफ़ीज़ जौनपुरी

बुत-कदा नज़दीक काबा दूर था

हफ़ीज़ जौनपुरी

बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है

हफ़ीज़ जौनपुरी

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