केक Poetry (page 6)

फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा

सिराज औरंगाबादी

दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा

सिराज औरंगाबादी

ऐ बाग़-ए-हया दिल की गिरह खोल सुख़न बोल

सिराज औरंगाबादी

रंग लाया दिवाना-पन मेरा

सिकंदर अली वज्द

जिन की आँखों में था सुरूर-ए-ग़ज़ल

सिकंदर अली वज्द

हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है

सिकंदर अली वज्द

होंटों पे सुख़न आँखों में नम भी नहीं अब के

सिद्दीक़ मुजीबी

जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

इक़बाल से हम-कलामी

शोरिश काश्मीरी

रास्ते पुर-पेच राही रुस्तगार

शोरिश काश्मीरी

ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ से आ गई होंटों पे जाँ तलक

शोला अलीगढ़ी

दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा

शोला अलीगढ़ी

ऐ हज़रत-ए-ईसा नहीं कुछ जा-ए-सुख़न अब

शोला अलीगढ़ी

गीली मिट्टी से बदन बनते हुए उम्र लगी

शमशाद शाद

अदल-ए-जहाँगीरी

शिबली नोमानी

यार को रग़बत-ए-अग़्यार न होने पाए

शिबली नोमानी

उस को अपनी ज़ात ख़ुदा की ज़ात लगी है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

जब अर्श पे दम तोड़ने लगती हैं दुआएँ

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

याँ लब पे लाख लाख सुख़न इज़्तिराब में

ज़ौक़

रहता सुख़न से नाम क़यामत तलक है 'ज़ौक़'

ज़ौक़

इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुख़न

ज़ौक़

नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए

ज़ौक़

न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से

ज़ौक़

जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है

ज़ौक़

जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर

ज़ौक़

दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से

ज़ौक़

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए

शैख़ अली बख़्श बीमार

हँसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ

शहपर रसूल

दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

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