व्याख्या Poetry (page 11)

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

अख़्तर शीरानी

जो फ़क़त शोख़ी-ए-तहरीर भी हो सकती है

अख़तर शाहजहाँपुरी

मैं ने जो ख़्वाब अभी देखा नहीं है 'अख़्तर'

अख़्तर होशियारपुरी

रुख़्सत-ए-रक़्स भी है पाँव में ज़ंजीर भी है

अख़्तर होशियारपुरी

जी लगा रक्खा है यूँ ताबीर के औहाम से

ऐन ताबिश

जी रहे हैं आफ़ियत में तो हुनर ख़्वाबों का है

ऐन ताबिश

न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए

ऐन सलाम

हैरत-ख़ाना-ए-इमरोज़

अहमद ज़फ़र

डेड-हाऊस

अहमद ज़फ़र

इक तसव्वुर तो है तस्वीर नहीं

अहमद ज़फ़र

यहाँ हर लफ़्ज़ मअनी से जुदा है

अहमद शनास

हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

आसमाँ-ज़ाद ज़मीनों पे कहीं नाचते हैं

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

हिज्र इक वक़्फ़ा-ए-बेदार है दो नींदों में

अहमद मुश्ताक़

मोनिस-ए-दिल कोई नग़्मा कोई तहरीर नहीं

अहमद मुश्ताक़

ज़ख़्म खाना ही जब मुक़द्दर हो

अहमद महफ़ूज़

रक़्स-ए-शरर क्या अब के वहशत-नाक हुआ

अहमद महफ़ूज़

दिल तुझे पा के भी तन्हा होता

अहमद हमदानी

रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गई

अहमद फ़राज़

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का

अहमद फ़राज़

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

अहमद फ़राज़

ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ

अहमद अता

ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे

अहमद अता

अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं

अहमद अशफ़ाक़

अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं

अहमद अशफ़ाक़

वो ख़्वाब जिस पे तीरा-शबी का गुमान था

आग़ाज़ बरनी

घर से निकलना जब मिरी तक़दीर हो गया

आग़ाज़ बरनी

नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से

आग़ा हज्जू शरफ़

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