व्याख्या Poetry (page 1)

शबाब आ गया उस पर शबाब से पहले

ए जी जोश

इन्नोसेंस

फ़ाख़िरा बतूल

न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए

ऐन सलाम

हद से बढ़ती हुई ता'ज़ीर में देखा जाए

नईम गिलानी

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

काम हैं और ज़रूरी कई करने के लिए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

कैसी ताबीर की हसरत कि 'ज़िया' बरसों से

ज़िया ज़मीर

ये तो हाथों की लकीरों में था गिर्दाब कोई

ज़िया ज़मीर

वो ख़्वाब क्या था कि जिस की हयात है ताबीर

ज़िया जालंधरी

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

निगाहों में ये क्या फ़रमा गई हो

ज़िया जालंधरी

अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई

ज़िया जालंधरी

फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले

ज़िया फ़तेहाबादी

जल-परी है तो वो तस्ख़ीर भी हो सकती है

ज़ीशान साजिद

जल-परी है तो वो तस्ख़ीर भी हो सकती है

ज़ीशान साजिद

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

ज़िंदगानी की हक़ीक़त तब ही खुलती है मियाँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दर्द शायान-ए-शान-ए-दिल भी नहीं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ख़ाक हम मुँह पे मले आए हैं

ज़काउद्दीन शायाँ

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

जिस की कुछ ताबीर न हो

ज़हीर रहमती

पानी पानी रहते हैं

ज़हीर रहमती

चौंक पड़ता हूँ ख़ुशी से जो वो आ जाते हैं

ज़हीर देहलवी

वाँ तबीअत दम-ए-तक़रीर बिगड़ जाती है

ज़हीर देहलवी

कनीज़-ए-वक़्त को नीलाम कर दिया सब ने

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

सर पर दुख का ताज सुहाना लगता है

युसूफ़ जमाल

कितने पेच-ओ-ताब में ज़ंजीर होना है मुझे

यूसुफ़ हसन

क़ैद-ए-उल्फ़त का मज़ा ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर में है

यूनुस ग़ाज़ी

तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को

योगेन्द्र बहल तिश्ना

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