व्याख्या Poetry (page 3)
मैं यूँ तो ख़्वाब की ताबीर सोचता भी नहीं
सुबहान असद
लिखा जो अश्क से तहरीर में नहीं आया
सिया सचदेव
दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर
सिराज औरंगाबादी
प्यासा जो मेरे ख़ूँ का हुआ था सो ख़्वाब था
सिद्दीक़ मुजीबी
जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
एहसास की दीवार गिरा दी है चला जा
शोज़ेब काशिर
जाने किस किस की तवज्जोह का तमाशा देखा
शोहरत बुख़ारी
इन को देखा था कहीं याद नहीं
शोहरत बुख़ारी
मिल गया जब वो नगीं फिर ख़ूबी-ए-तक़दीर से
शोएब निज़ाम
शो'ला-ख़ेज़-ओ-शो'ला-वर अब हर रह-ए-तदबीर है
शिव चरन दास गोयल ज़ब्त
ख़्वाब नादिम हैं कि ता'बीर दिखाने से गए
शाज़ तमकनत
ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर
शौकत परदेसी
दिखाई देंगे जो गुल मेज़ पर क़रीने से
शारिक़ जमाल
मसल कर फेंक दूँ आँखें तो कुछ तनवीर हो पैदा
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
वक़्त हर बार बदलता हुआ रह जाता है
शमशीर हैदर
पलकों पे सितारा सा मचलने के लिए था
शमीम रविश
आ तिरे संग ज़रा पेंग बढ़ाई जाए
शमीम अब्बास
दस्त-ए-क़ातिल में ये शमशीर कहाँ से आई
शकीला बानो
ज़िंदगी यूँ तो बहुत अय्यार थी चालाक थी
शकील शम्सी
क्या हसीं ख़्वाब मोहब्बत ने दिखाया था हमें
शकील बदायुनी
आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया
शकील बदायुनी
ज़िंदा रहना है तो साँसों का ज़ियाँ और सही
शकील आज़मी
रौशन हैं दिल के दाग़ न आँखों के शब-चराग़
शकेब जलाली
शाम को सुब्ह से ताबीर करो तुम लेकिन
शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी
उम्र का बाक़ी सफ़र करना है इस शर्त के साथ
शहरयार
अब तो ले दे के यही काम है इन आँखों का
शहरयार
ख़्वाब
शहरयार
अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें
शहरयार
हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं
शहराम सर्मदी
अब तिरी याद से वहशत नहीं होती मुझ को
शाहिद ज़की
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