व्याख्या Poetry (page 2)

एक इक हर्फ़ समेटो मुझे तहरीर करो

यासमीन हमीद

ख़्वाब ता'बीर में बदलता है

यशब तमन्ना

दरून-ए-हल्का-ए-ज़ंजीर हूँ मैं

याक़ूब तसव्वुर

ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने

यगाना चंगेज़ी

हम ने उस शोख़ की रानाई क़ामत देखी

वसीम ख़ैराबादी

रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी

वहीद अख़्तर

कई भयानक काली रातों के अँधियारे में

वहाब दानिश

वो निहत्ता नहीं अकेला है

विकास शर्मा राज़

इक बहाना है तुझे याद किए जाने का

तुफ़ैल बिस्मिल

वो अव्वलीं दर्द की गवाही सजी हुई बज़्म-ए-ख़्वाब जैसे

तौसीफ़ तबस्सुम

दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है

तौक़ीर तक़ी

आ गई धूप मिरी छाँव के पीछे पीछे

तौक़ीर रज़ा

तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है

तसनीम आबिदी

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

आज इस वक़्त वो जब याद आया

तारिक़ राशीद दरवेश

कभी न आएँगे जाने वाले

तारिक़ क़मर

जितने अल्फ़ाज़ हैं सब कहे जा चुके

तारिक़ क़मर

वो मेरे ख़्वाब की ताबीर तो बताए मुझे

तारिक़ क़मर

आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है

तारिक़ नईम

ख़्वाब तो ख़्वाब है ता'बीर बदल जाती है

तनवीर अहमद अल्वी

ये लोग करते हैं मंसूब जो बयाँ तुझ से

तैमूर हसन

हर-सू ख़ुशबू को फ़ज़ाओं में बिखरता देखूँ

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

जैसे कि इक फ़्रेम हो तस्वीर के बग़ैर

सय्यद अनवार अहमद

हर क़दम साँपों की आहट और मैं

सालेह नदीम

ये जो हम अतलस ओ किम-ख़्वाब लिए फिरते हैं

सुल्तान अख़्तर

सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है

सुल्तान अख़्तर

मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

सुल्तान अख़्तर

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